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🇵🇸 “जब आसमान से सिर्फ आग बरसी…”
New Fun Junction की विशेष प्रस्तुति: , रिजवान की कलम
आदाब। मैं नेहा। आज मैं आपको रुलाने आई हूँ, तो पड़ेंगे आप अगर दूसरे के दर्द को अपना समझेंगे। यह **फ़लस्तीन की आँखों से निकलने वाली आँसू की धारा** है।
(धीरे से… टूटी हुई साँसों के बीच)
वो रात भी किसी रात जैसी नहीं थी… **आसमान फटा था** — जैसे ख़ुदा भी चुपचाप देख रहा हो।
(रुककर)
ग़ज़ा की गलियों में बच्चों की **हँसी नहीं थी उस दिन**, बस धूल… और **चीख़ें** थीं।
(आवाज़ थरथराती हुई)
एक माँ, अपनी बच्ची को गोद में लिए भाग रही थी, कहीं कोई दीवार सलामत मिल जाए… कहीं कोई कोना बचा हो — **जहाँ ज़िंदगी छुप सके।**
(धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए)
वो बच्ची… जिसकी उम्र बस पाँच साल थी, जिसे गुड़िया चाहिए थी, जिसे आसमान में उड़ते कबूतर अच्छे लगते थे… उसने पूछा —
**“माँ, ये आग आसमान से क्यों गिरती है?”**
(ठहरकर)
माँ बस चुप रही… क्योंकि अब जवाब देने के लिए ख़ुदा से उम्मीद के अलावा **अब हर शब्द भी जल चुके थे।**
(धीरे-धीरे आवाज़ टूटती हुई)
हर ईंट के नीचे कोई **सपना दफ़्न** था, हर आँसू के पीछे एक कहानी — और दुनिया? वो बस ख़बरें गिनती रही… **लाशें गिनती रही।**
(थोड़ा ग़ुस्से और दर्द के साथ)
किसी ने कहा — “ये राजनीति है।” किसी ने कहा — “ये बदला है।” पर जिसने अपना बच्चा खोया, उसके लिए ये बस **क़यामत** थी।
ज़ालिमों ने पहले शरणार्थी बनकर जिन से पनाह माँगी, आज उन्हीं का खून बहाकर, उन्हीं को घर से बेघर कर रहे हैं।
(रुककर, लंबी साँस)
ग़ज़ा आज भी ज़िंदा है… मिट्टी में लिपटी, राख से ढकी — **मगर ज़िंदा है।**
क्योंकि हर टूटी दीवार के पीछे एक माँ अब भी कहती है —
“मैं अपने बेटे को फिर से पालूँगी… लेकिन किया बता कर पालेगी हाथों में किताब से कर पालेगी के बेटा तेरा पूरा खानदान जालिमों ने जला दिया लेकिन तू किताब पढ़ या बेटा तू भी जिंदा रह कर किया करेगा दो चार जालिमों को मार कर मर जा फिर तुझे दुनिया आतंकवादी के खिताब से नवाज देगी
(धीरे से, जैसे आँसू रोकते हुए)
पता नहीं वो दिन कब आएगा… जब बच्चे आसमान देखकर **डरेंगे नहीं**, बल्कि **सितारे गिनेंगे।**
(लंबी ख़ामोशी…)
बस इतना जान लो — फ़लस्तीन आज भी साँस ले रहा है, हर लाश के नीचे, हर मलबे के पार — **उम्मीद अभी बाकी है। 💔**
📖 भाव और 🎧 रीडिंग नोट
भाव: दर्द, मातृत्व, बेबसी, और इंसानियत का टूटना।
रीडिंग नोट: धीरे बोलो। रुक-रुक कर। आवाज़ को कहानी के भाव के अनुसार ऊँचा-नीचा करो। इस स्क्रिप्ट का असर ख़ामोशी के बीच छिपा है, शब्दों में नहीं।
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