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खाली स्टेशन का डरावना सच | The Empty Station Horror Story
खाली स्टेशन
रात के ठीक 12:00 बजे, आकाशदीप ने घड़ी पर नज़र डाली। उसकी ट्रेन को आए हुए 20 मिनट हो चुके थे, लेकिन प्लेटफॉर्म पर न तो कोई ट्रेन थी, और न ही कोई इंसान। वह अपने गाँव जाने के लिए दिल्ली के एक छोटे से आउटर स्टेशन पर अकेला फँसा हुआ था।
घनी कोहरे ने प्लेटफॉर्म को अपनी चादर में लपेट रखा था,
और एकमात्र पीली लाइट कोहरे को चीरने की असफल कोशिश कर रही थी। स्टेशन की इमारत पूरी तरह से अंधेरे में डूबी थी। हवा में अजीब सी ख़ामोशी थी, इतनी गहरी कि आकाशदीप को अपने दिल की धड़कन स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
तभी, दूर पटरियों की तरफ़ से एक धीमी, लयबद्ध आवाज़ आई।
ऐसा लगा जैसे कोई भारी चीज़ पटरी पर घिसट रही हो – 'खिच... खिच... खिच...'। आकाशदीप ने टॉर्च जलाई और पटरियों की तरफ़ रोशनी डाली। वहाँ कुछ नहीं था। उसने सोचा कि शायद यह कोई आवारा कुत्ता या हवा का धोखा होगा।
जैसे ही उसने टॉर्च नीचे की,
उसकी नज़र प्लेटफॉर्म के बिल्कुल किनारे पर पड़ी। कोहरे के बीच से एक पुरानी, गन्दी-सी गुड़िया का चेहरा उसे घूर रहा था। गुड़िया की आँखें काली और ख़ाली थीं।
आकाशदीप को लगा कि वह डर के मारे काँप रहा है।
उसने फिर से टॉर्च गुड़िया पर डाली, लेकिन इस बार... गुड़िया हिलकर लगभग एक इंच आगे बढ़ गई थी!
आकाशदीप पीछे हटने लगा। अब वह आवाज़ और नज़दीक थी
खिच... खिच... खिच...'। उसने अपने कदमों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की, पर ख़ामोशी इतनी ज़्यादा थी कि उसके जूतों की रगड़ भी चीख़ जैसी लग रही थी।
फिर, स्टेशन के अँधेरे वेटिंग रूम के दरवाज़े से,
एक बहुत ही पतला, लंबा साया दिखाई दिया। वह साया ज़मीन से थोड़ा ऊपर उठा हुआ था और उसकी शक्ल बिल्कुल उस गुड़िया जैसी थी।
साया अब दरवाज़े से बाहर निकलकर प्लेटफॉर्म पर धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा।
'खिच... खिच... खिच...' की आवाज़ हर गुज़रते सेकंड के साथ तेज़ हो रही थी।
आकाशदीप ने
पलटकर भागना शुरू कर दिया। भागते-भागते वह चीख़ा, "यहाँ... कोई... है?"
जवाब में
से बस एक छोटी लड़की की दबी हुई, गुर्राती हुई हँसी सुनाई दी, जो उसके ठीक कान के पास से आई थी।हाँ दूसरा डायलॉग या कहानी का मुख्य मोड़ लिखें।
समाप्त। लेखक: [Rizwan Ahmed] | अगले भाग के लिए बने रहें!
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