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सच्चाई की गहराई तक पहुँचने वाला गंभीर मंच
जंगल में एक अनहोनी
रात का सन्नाटा था। आसमान में तारे थे
रात का सन्नाटा था। आसमान में तारे थे और ज़मीन पर घना अंधेरा। इस अंधेरे को चीरती हुई एक मालगाड़ी अपनी पूरी रफ़्तार से चली जा रही थी, उसके पहिए पटरी पर एक लयबद्ध शोर मचा रहे थे। पर किसी को पता नहीं था कि उस लंबी ट्रेन के एक आख़िरी डिब्बे से हल्का-हल्का धुआँ निकल रहा था। वह धुआँ धीरे-धीरे घना हो रहा था, और अगर कोई क़रीब से देखता, तो धुएँ के पीछे आग की लपटें सुलगती हुई साफ़ दिखाई देतीं—एक ख़ामोश ख़तरा, जो जंगल के बीचों-बीच तेज़ी से आगे बढ़ रहा था।
ठीक उसी क्षण,
ठीक उसी क्षण, जंगल के किनारे झाड़ियों में एक विशाल भालू खड़ा था। अचानक उसकी नज़र तेज़ी से गुज़रती मालगाड़ी पर पड़ी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में ट्रेन के डिब्बे से उठता हुआ वह धुआँ और आग का हल्का-सा रंग दिखाई दिया। वह घबराकर सीधा खड़ा हो गया, उसके मन में एक बेचैनी थी। वह जानता था कि ख़तरा बड़ा है।।
भालू को लगा कि अगर ट्रेन नहीं रुकी,
भालू को लगा कि अगर ट्रेन नहीं रुकी, तो जंगल और उसके साथियों पर भी आफ़त आ सकती है। उसने इधर-उधर दौड़ना शुरू किया, अपने बड़े पंजों से ज़मीन पर प्रहार किया और गुस्से में दहाड़ा भी, मानो ड्राइवर को चेतावनी दे रहा हो। पर ट्रेन तो बहुत दूर निकल रही थी।
तब भालू ने एक पल का भी इंतज़ार नहीं किया।
तब भालू ने एक पल का भी इंतज़ार नहीं किया। अपनी पूरी ताक़त से तेज़ी से भागते हुए वह ट्रेन से आगे निकल गया। उसने अपनी जान की परवाह न करते हुए, रेलवे ट्रैक पर खड़े होने का फ़ैसला किया। सामने से आती मालगाड़ी की तेज़ हेडलाइट्स ने उसकी देह को रोशन कर दिया। ट्रेन के ड्राइवर ने जब अचानक ट्रैक पर इतने बड़े भालू को देखा, तो वह हैरान रह गया और उसने तुरंत एमरजेंसी ब्रेक लगा दिए।
एक कान फाड़ देने वाली चीख़ के साथ ट्रेन रुक गई।
धुआँ और आग अब साफ़ दिखाई दे रहे थे। ड्राइवर नीचे उतरकर भालू को देखता है। भालू ज़मीन पर पंजा मारकर, बार-बार पीछे के डिब्बे की ओर इशारा करता है, मानो वह कोई इंसान हो जो चेतावनी दे रहा हो। ड्राइवर भागा और जैसे ही उसने मुड़कर देखा, उसकी आँखें फटी रह गईं—मालगाड़ी के डिब्बे में भयानक आग लगी हुई थी, जो फैलने ही वाली थी।
वह घबराकर चिल्लाया और तुरंत अपने साथियों को मदद के लिए बुलाते हुए, ख़ुद रेत और पानी फेंकना शुरू कर दिया।
और फिर जो हुआ, वह किसी अजूबे से कम नहीं था।
और फिर जो हुआ, वह किसी अजूबे से कम नहीं था। भालू दौड़कर पास के जंगल से गीला लकड़ी का एक बड़ा तना घसीटकर लाया और ड्राइवर के साथ मिलकर आग बुझाने में मदद करने लगा। उस भालू की आँखों में डर भी था, पर शायद उससे ज़्यादा थी जीवन बचाने की एक इंसानियत।
आख़िरकार, आग बुझ गई। ख़तरा टल गया था।
ड्राइवर ने कृतज्ञता से भालू की तरफ़ देखकर हाथ जोड़े। भालू ने शांत नज़रों से उसे देखा और बिना कुछ कहे, धीरे-धीरे जंगल की अंधेरी छाया में वापस चला गया।
ट्रेन फिर से चल पड़ी। पीछे जंगल की ओर जाता हुआ वह भालू बस धुंधला-सा दिखाई दे रहा था। और हवा में एक विचार गूँज रहा था—
“कभी-कभी प्रकृति भी हमें बचाने आती है, बशर्ते हम उसे दुश्मन न समझें।”
समाप्त। लेखक: [Rizwan Ahmed | अगले भाग के लिए बने रहें!
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